बेवजह blog

To experiment with words . . . to paint the canvas with audible colours.

September 8, 2016

साहिर लुधियानवी का एक दुर्लभ इंटरव्यू

फिल्मी और अदबी दोनो तरह की शायरी में मुहज़्ज़ब मकाम रखने वाले मशहूर शायर साहिर लुधियानवी से १९६८ में  उर्दू के एक दूसरे बड़े शायर नरेश […]
September 8, 2016

बेवजह यात्रा: फुटकर यादें

  रानीखेत से कुछ दूर जंगलों से गुजरते हुए इस बात का अहसास हुआ कि जंगल कितना भी घना क्यों न हो एक पतली सी पगडंडी […]
September 8, 2016

अभिनेता और उसकी हैट

इस ज़िदगी के मंच में मैं अभिनेता ठीक-ठाक हूँ, बस जिस किरदार में हूँ उसमें मेरे सिर पर एक हैट है और मेरी हैट मेरे सिर […]
September 8, 2016

शकुंतला और जूलिएट

शकुन्तला का अन्त तो बहुत पहले हो गया था , अब जूलियट भी लुप्तप्राय है। जिन्होंने तब शकुन्तला को मार डाला था , वे ही अब […]
September 8, 2016

मिस्तरी पर भी लिखा जा सकता है क्या ?

पुराने लखनऊ में सिटी स्टेशन के पास एक छोटी सी गुमटी है, जहां स्कूटर मोटरसाइकिल वगैरह ठीक होती है. ये गुमटी जिन मिस्तरी साहब की है, […]
September 8, 2015

अभी कुछ लोग उर्दू बोलते हैं

Himanshu Bajpai लखनऊ के बारे में एक बात बहुत मशहूर है. यहां आप किसी से रास्ता पूछिए, वो आपको साथ चल के मंज़िल तक पहुंचाएगा. इस […]
September 8, 2014

लखनऊ को आपकी ज़रुरत है मन्ने भाई |

प्रदीप कपूर साहब के स्टेटस से पता चला कि मुन्ने बख्शी नहीं रहे. तस्वीरों की नाज़ बरदारी में उम्र गुज़ारने वाले मुन्ने बख्शी खुद एक तस्वीर […]