बेवजह blog

To experiment with words . . . to paint the canvas with audible colours.

July 31, 2018

आनंद प्रहलाद की मौत समाज की संवेदना पर कोड़ा है!

आनंद प्रहलाद नहीं रहे. आनंद लखनऊ के रंगकर्म का चेहरा नहीं थे लेकिन वो लखनऊ के रंगकर्मीय संघर्ष का चेहरा निश्चित तौर पर थे. आनंद की […]
August 10, 2017

कला को ले कर मेरी समझ

  कला के प्रति मेरी समझ क्या है? मैं खुद से अक्सर यह सवाल करता हूँ और मेरे आलोचक या मुझे पसंद और नापसंद करने वाले […]
May 2, 2017

पत्रकारिता के सरोकार और गाँधी

साथियों, हम अपनी बात संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर की एक टिप्पणी से शुरू करेंगे, जो उन्होंने 1925 में वृंदावन में आयोजित हिंदी संपादक सम्मेलन में सभापति […]