The Boy Who Learned
January 24, 2017Coherence
January 31, 2017मस्तो गौरव श्रीवास्तव
बाल कहानियों से आप क्या चाहतें हैं ? बच्चों की कल्पना की उड़ान, जीवन व नैतिकता की ज़रूरी बातें और खूब सारी मस्ती…
पर बच्चे बस मज़े के लिए पढ़ना चाहते हैं कि उनको रस मिले वो हंस सके और बहुत कुछ अनुभव कर सकें…
मामा सुरनया की किताब नार्थ वे का युद्ध जिसका हिन्दी अनुवाद हिमांशु बाजपेयी ने किया है, इन तमाम बातों को अपने भीतर समेटे हुए है…कुछ बातें इस किताब को और भी सुन्दर बनातीं हैं जैसे श्रेष्ठता का पैमाना केवल मशीनी तर्ज़ पर विकसित होना या नियम बद्ध तरीके से उठाना बैठना नहीं, बल्की ख़ुशी और आनंद के साथ जीवन यापन है
किताब बताती है कि नार्थ वे के चंद लोग भले ही अपने आप को कितना ही श्रेष्ठ मानते हों लेकिन असली ख़ुशी तो अंबालों के पास है. नॉर्थवे का राजा जहां क्रूर और अत्याचारी है, अंबालों की रानी सहृदय और प्रजा से प्रेम करने वाली है.
किताब बहुत अच्छी तरह, सूक्ष्म परतों में बाल मन के विकास का काम करेगी…उनके स्वपन देखने की क्षमता, सही और गलत का चयन, उनमें सामूहिकता का विकास और माता पिता के प्रेम पर विश्वास… ये सारी बातें किताब बच्चों को बिना किसी उपदेश के बड़ी सहजता से सिखा देती है.
कहानी में बच्चों के पास जो उनके अचूक हथियार थे वो माता पिता के बच्चों को दिए “प्रेम के छल्ले” थे…जिन्हें नोर्थवासी देख नहीं सकते थे..तापस पर्वत की रानी की रक्षा या नदी, हवा, बंदरों का बच्चों की मदद करना..और बच्चों के जाने पर, चाँद का खून के आंसू रोना, पेड़ों का पत्ते त्यागना और निर्मल पूर्वी नदी का चीख के साथ जम जाना आदि बच्चों के मन को, प्रकृति के साथ बहुत गहरे जोड़ता है…
किताब में कहानी जितनी सुन्दर है, इसमें बने चित्र भी उतने ही सुंदर हैं. ये कहानी के पूरक की तरह व्यवहार करते हैं… कहानी सुनने या पढ़ने के साथ जब बच्चे इन चित्रों को देखते हैं तो उनका मन पूरी तरह इस कहानी की दुनिया में ही रम जाता है. समग्रता में यही इस किताब की सबसे बड़ी ख़ासियत है, कि ये बालमन को बहुत सहजता से अपने साथ जोड़ लेती है. किताब अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवादित है. अनुवाद अच्छा है.
ये किताब मुझे बेहद पसंद आयी, किताब बेहद रोचक ढंग से लिखी गयी है मैं निश्चित ही बच्चों के साथ होने वाली नाट्य कार्यशाला या स्टोरी टेलिंग सैशन में इस का पाठ करूँगा… हिन्दी बाल साहित्य की दुनिया में ये किताब एक बड़ा इज़ाफा है वर्ना हमारे यहाँ बाल साहित्य के नाम पे स्वाद और रस से ख़ाली नैतिकता के बोझ से लबरेज़ किताबें ज़्यादा हैं.